अजीत पार्थ न्यूज संवाद वाराणसी
तीनों लोकों से न्यारी काशी नगरी में बसंत पंचमी के दिन गजब का उत्साह देखने को मिला। एक तरफ काशी में देश का 74वां गणतंत्र दिवस मनाया गया, वहीं दूसरी तरफ वाग्देवी मां सरस्वती की पूजा आराधना पूरे शहर में धूमधाम से हुई। इसके अलावा शाम होते-होते बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ के तिलकोत्सव से पूरा शहर हर्ष से आह्लादित हो उठा। पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के आवास पर बाबा विश्वनाथ के रजत पंचबदन प्रतिमा का अभूतपूर्व श्रृंगार किया गया। इस दौरान बाबा को तिरंगे का अंगवस्त्रम् भी पहनाया गया।
पूर्व महंत डॉ.कुलपति तिवारी के अनुसार श्री काशी विश्वनाथ गृहस्थ रूप में काशी में विराजते हैं। यही कारण है कि यहां उनका तिलक, विवाह और गौना तीनों भव्य रूप से मनाने की परंपरा रही है। आज के दिन बसंत पंचमी भी है तो मां सरस्वती की पूजा भी होती है। साथ ही बसंत पंचमी के दिन ही होलिका भी स्थापित की जाती है। आज के ही दिन माता गौरा के पिता हेमवान भोलेनाथ का तिलक लेकर पहुंचे थे, उसी परंपरा को काशी में सदियों से निभाया जाता है। पूर्व महंत के मुताबिक इस बार अद्भुत होगी शिव बारात, दिखेगी जी-20 की छाप
वहीं शिव बारात समिति के संयोजक दिलीप सिंह नें बताया कि दुनिया में और जगहों पर इंसान और शिव के बीच भक्त और भगवान का रिश्ता होता है, जबकि काशी के लोगों का भगवान शिव से पिता और पुत्र का रिश्ता है। उन्होंने बताया कि हम हर साल परंपरागत रूप से शिव बारात निकालते हैं। इस वर्ष चूंकि देश को जी-20 सम्मेलन के आतिथ्य का अवसर प्राप्त हुआ है और बाबा की नगरी में इसके कई आयोजन होने हैं, ऐसे में इस वर्ष के शिव बारात में जी-20 की छाप भी आप सभी को देखने को मिलेगी। उन्होंने कहा कि इस बार अब तक की सबसे अद्भुत शिव बारात निकलेगी उसमें शामिल होंगे शिव पिता, अन्नपूर्णा माता, विष्णु मामा और गंगा मौसी ।
केंद्रीय ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष अजय शर्मा नें बताया कि काशी में हर त्यौहार का अलग ही उत्साह होता है। उसमें भी बसंत पंचमी, महाशिवरात्रि और रंगभरी एकादशी के उत्सव के बारे में क्या पूछना। पुराणों में लिखा है कि काशीवासियों के लिए शिव साक्षात पिता हैं, मां अन्नपूर्णा हमारी माता हैं। ढुंढीराज गणेश हमारे भ्राता हैं। दंडपाणि भैरव हमारे भ्राता हैं। भगवान विष्णु हमारे मामा हैं और गंगा जी मौसी हैं। इस भाव से काशी में जो जीता है उसे ही काशी प्राप्त होती है। हम इसी भाव से इस परंपरा को निभाते आये हैं। हम सब एक परिवार की तरह ही यहां जीते हैं। काशी में हर चीज दिव्य और भव्य होती है।