रिपोर्ट- डॉ.अजीत मणि त्रिपाठी बस्ती
सन्यास के बाद सम्पूर्ण जीवन बेलगूदा खाकर व्यतीत करने वाले वेद-वेदांग में पारंगत ब्रह्मऋषि बिन्धेश्वरी प्रसाद शुक्ल ब्रह्मचारी जी महाराज जी का पन्चानबे वर्ष की अवस्था में अयोध्या के साकेत धाम में देहावसान हो गया। उनके उत्तराधिकारी राघवाचार्य जी महाराज के मुताबिक रविवार को सरयू नदी के राजघाट पर उन्हें जलसमाधि दी गई।
उल्लेखनीय है कि बस्ती जनपद के पकरी भीखी गांव के मूल निवासी ब्रह्मचारी जी महाराज वेद वेदांग सहित सकल शास्त्र में पारंगत थे, इसके प्रमाणस्वरूप नब्बे के दशक में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा नई दिल्ली में आयोजित सोमयज्ञ को सम्पन्न कराने के लिए सम्पूर्ण देश के यज्ञाचार्यों द्वारा सोमयज्ञ के विषय में असमर्थ होने पर राजीव गांधी के निवेदन पर ब्रह्मचारी जी महाराज द्वारा उक्त यज्ञ में मुख्य यज्ञाचार्य की भूमिका का निर्वहन किया गया था।
ब्रह्मचारी जी के भाई पटेश्वरी प्रसाद शुक्ल के पुत्र अरुण शुक्ल के अनुसार उनके पिताजी बताते थे कि बचपन में जब ब्रह्मचारी जी महाराज का यज्ञोपवीत संस्कार घर पर आयोजित किया गया तो वह उसी समय बटुक वेश में दंडधारी बनकर घर से निकल गए और फिर कई वर्षो बाद वेद-वेदांग में महारत हासिल कर पैतृक गांव वापस आए। गांव वापसी पर ब्रह्मचारी जी महाराज के पिता कुबेर नाथ शुक्ल बहुत प्रसन्न हुए, लेकिन यह प्रसन्नता बहुत दिनों तक नहीं रही और कुछ सप्ताह बाद वह पुनः गृहत्याग दिए ।
उनकी शिक्षा दीक्षा काशी में हुई थी और वह बहुत दिनों तक नेपाल एवं हिमालय में व्यतीत किए। वह घंटों नदी में खड़े होकर जलतपस्या किया करते थे, तथा सन्यास के बाद सम्पूर्ण जीवन किसी भी व्यक्ति के हाथ से छूए हुए पदार्थ का सेवन नहीं किए और अंत समय तक वह अपने हाथ से निर्मित वस्तु का सेवन किए। ब्रह्मचारी जी के गोलोकवास से देश-विदेश में बसे उनके असंख्य शिष्यों एवं अनुयायियों में शोक की लहर व्याप्त है।