प्राचीन परंपरा की संवाहक है चौरासी कोसीय परिक्रमा
एपी न्यूज बस्ती
अयोध्या की विश्व प्रसिद्ध 84 कोसी परिक्रमा सदियों पुरानी है। इस यात्रा में श्रद्धालु भगवान श्री राम के राज्य के चौरासी कोस का भ्रमण करते हैं। माना जाता है कि भगवान राम की अयोध्या से चौरासी कोस का इलाका भी अयोध्या धाम ही है। संत महात्माओं का कहना है कि सनातन धर्म में 84 लाख योनियों होती हैं, तथा देवी देवता भी 84 कोटि के होते हैं। इसलिए 84 कोसी परिक्रमा करने से मनुष्य को 84 लाख योनियों में भटकने का क्रम समाप्त हो जाता है एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। मखौड़ा धाम में प्रतिवर्ष चैत्र पूर्णिमा को मेला लगता है और इसी दिन यहां बड़ी संख्या में साधु संत और गृहस्थ मखौड़ा धाम में एकत्रित होते हैं, और यही से परिक्रमा अगले दिन वैशाख मास की प्रतिपदा को प्रारंभ होती है। इस मेले की खासियत यह है कि उत्तर प्रदेश की विभिन्न जनपदों के अलावा देश के विभिन्न प्रांतों से लोग इस परिक्रमा में बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। जिसमें बिहार और उत्तराखंड के श्रद्धालुओं की तादाद अधिक होती है। दो से ढाई हजार लोग इस यात्रा में शामिल होते हैं। महिला पुरुष के अलावा दिव्यांग भी इस यात्रा में सम्मिलित होते हैं।
अयोध्या से आने वाले साधु और गृहस्थ चैत्र पूर्णिमा की दिन मखौड़ा धाम में मनोरमा नदी में स्नान करते हैं। उस दिन यहां विशाल मेला लगता है। लिट्टी चोखा का भंडारा होता है। अगले दिन भोर में मनोरमा नदी में स्नान कर यात्री परिक्रमा के लिए प्रस्थान करते हैं। यात्रियों का पहला पड़ाव 15 किलोमीटर दूर छावनी में रामरेखा नदी के तट पर रामरेखा मंदिर होता है। वहां रात विश्राम होता है। अगले दिन रामरेखा में स्नान के बाद यात्री 29 किलोमीटर दूर हनुमान बाग चकोही के लिए प्रस्थान करते हैं। यह यात्रियों का दूसरा पड़ाव होता है। यहां से तकरीबन 10 किलोमीटर की यात्रा के बाद श्रद्धालु शेरवा घाट में सरयू नदी पार कर श्रृंगी ऋषि आश्रम गोसाईगंज पहुंचते हैं। इस तरह बस्ती जनपद में यात्री दो रात व 3 दिन रहते हैं। इस बार यात्रा 17 अप्रैल से प्रारंभ होकर 8 मई को समाप्त होगी अर्थात 22 दिनों की यात्रा में श्रद्धालु बस्ती, अयोध्या, अंबेडकर नगर, बाराबंकी, गोंडा होते हुए पुनः मखौड़ा धाम पहुंचेंगे ।
84 कोसीय परिक्रमा का नेतृत्व अयोध्या के संत गयादास करते हैं । उन्होंने बताया है कि यात्रा भगवान राम से जुड़े स्थलों से होते हुए गुजरती है। त्रेता युग में भगवान श्री राम जिन रास्तों से चलकर ऋषि मुनियों की सहायता के लिए गए थे, और राक्षसों का संहार किए थे। उन्ही रास्तों से होकर यात्रा गुजरती है।